Sunday 21 December 2014

तिब्‍बत के कुछ मठो में बहुत ही प्राचीन ध्‍यान-विधियों में से एक विधि अभी भी प्रयोग की जाती है। यह विधि इसी सत्‍य पर आधारित है जो मैं आपसे कह रहा हूँ। वे सिखाते हैं कि कभी-कभी आप अचानक गायब हो सकते है। बगीचे में बैठे हुए बस भव करें कि आप गायब हो रहे है। बस देखें कि जब आप दुनिया से विदा हो जाते है, जब आप यहां मौजूद नहीं रहते, जब एकदम मिट जाते हैं। तो दुनिया कैसी लगती है। बस एक सेकेंड के लिए होने का प्रयोग करके देखें।
अपने ही घर में ऐसे हो जाएं जैसे कि नहीं है। यह बहुत ही सुंदर ध्‍यान है। चौबीस घंटे में आप इसे कई बार कर सकते है—सिर्फ आधा सेकेंड भी काफी है। आधे सेकेंड के‍ लिए एकदम खो जाएं आप नहीं है और दुनिया चल रही है। जैसे-जैसे हम इस तथ्‍य के प्रति और सजग होते है कि हमारे बिना भी बड़े मजे से चलती है, तो हम अपने अस्तित्‍व के एक और आयाम के प्रति सजग होते हैं, जो लंबे समय से, जन्‍मों-जन्‍मों से उपेक्षित रहा है। और बह आयाम है स्‍वीकार भाव का। हम चीजों को सहज होने देते हैं, एक द्वार बन जाते हैं। चीजें हमारे बिना भी होती रहती हैं।

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