Friday 19 December 2014

एक हिटलर पैदा होता है, तो पूरी जर्मनी को अपना विचार दे देता है, और पूरे जर्मनी का आदमी समझता है कि ये मेरे विचार है।
ये उसके विचार नहीं है, एक बहुत डाइनेमिक आदमी अपने विचारों को विकीर्ण कर रहा है। और लोगो में डाल रहा है, और लोग उसके विचारों की सिर्फ प्रतिध्‍वनियां है।
और यह डाइनामिज्‍म इतना गंभीर और इतना गहरा है, की मोहम्‍मद को मरे हजार साल हो गए, जीसस को मरे दो हजार साल हो गए, क्रिश्चियन सोचता है कि मैं अपने विचार कर रहा हूं, वह दो हजार साल पहले जो आदमी छोड़ गया है, तरंगें, वे अब तक पकड़ रही है।
महावीर या बुद्ध या कृष्‍ण, कबीर, नानक, अच्‍छे या बुरे कोई भी तरह के डाइनेमिक लोग—जो छोड़ गए है वह तुम्‍हें पकड़ लेता है।
तैमूरलंग ने अभी भी पीछा नहीं छोड़ा है दिया है मनुष्‍यता का, और न चंगीजखां ने पीछा छोड़ा है, न कृष्‍ण, न सुकरात, न सहजो ने, न तिलोमा, न राम, न रावण, पीछा वे छोड़ते ही नहीं।
उनकी तरंगें पूरे वक्‍त होल रही है, तुम्‍हारी मन स्थिती जैसी हो, या जिस हालात में हो वहीं तरंग को पकड़ उसमें सराबोर हो जाती है, सही मायने में तुम-तुम हो ही नहीं, तुम एक मात्र उपकरण बन कर रहे गये हो, मात्र रेडियों।
जागना ही अपने होने की पहली शर्त है, ध्‍यान जगाने की कला का नाम है, ध्‍यान तुम्‍हारी आंखों को खोल पहली बार तुम्‍हें ये संसार दिखाता है।
सपने के सत्‍य में, जागरण के सत्‍य में क्या भेद है।
केवल—‘’ध्‍यान’’
–ओशो

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